पोरसा:
भारतीय किसान अपनी दिन-रात की मेहनत से खेतों में पसीना बहाकर अपनी जीविका अर्जित करता है, लेकिन आजकल उन्हें एक ऐसी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, जो उनकी मेहनत के परिणाम को नष्ट कर रही है। बेजुबान आवारा गायें और सांड किसानों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गए हैं। ये पशु खेतों में घुसकर उनकी पूरी फसल को चट कर जाते हैं, और किसान helpless होकर बस देखते रहते हैं। ताज्जुब की बात यह है कि उन्हें रोकने के लिए लगाए गए तार, करंट के तार, सब कुछ उन पर कोई असर नहीं डालता। तारों को तोड़कर ये पशु खेतों में घुस जाते हैं और अपनी लापरवाही से किसानों की साल भर की मेहनत को खत्म कर देते हैं।
किसान अब यह सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर कब तक यह सब चलेगा? कब तक शासन अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुराता रहेगा? सरकार ने पहले वादा किया था कि हर ग्राम पंचायत में गौशाला खोली जाएगी, जहां बेजुबान गायों और सांडों को रखा जाएगा, ताकि यह समस्या खत्म हो सके। लेकिन वह वादा सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रहा। आज तक किसी भी ग्राम पंचायत में गौशाला नहीं खोली गई, और न ही कोई ठोस कदम उठाए गए हैं।
आजकल तो किसान यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि आखिर उनके लिए खेती का क्या मतलब रह गया है, जब उनकी सारी मेहनत बेजुबान पशुओं के सामने बेकार हो जाती है। वह खेतों में तार लगाते हैं, लेकिन वह तार तोड़ दिए जाते हैं, करंट से तार भी लगाए जाते हैं, लेकिन यह गायें और सांड फिर भी इनसे डरते नहीं। किसान अब अपनी पूरी फसल खोने के डर से खेती करने से भी डरने लगे हैं, क्योंकि यह कोई छोटी-मोटी समस्या नहीं है, यह उनकी पूरी जीविका का सवाल है।
किसान कभी समझ नहीं पाते कि क्या ये बेजुबान पशु उनकी मेहनत का मोल नहीं समझते या फिर शासन को उनकी समस्याओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। इन पशुओं से खेतों में हुई नष्ट फसलों का वित्तीय नुकसान तो एक ओर, उनका मानसिक तनाव और असमर्थता भी बढ़ती जा रही है। यह सिर्फ एक कृषि संकट नहीं है, यह एक जीवन-यापन की समस्या बन चुकी है।
इतना ही नहीं, शासन की ओर से यह भी बयान आता है कि गायें हमारी पूजनीय हैं, उनकी पूजा करनी चाहिए, लेकिन जब उनकी देखभाल और संरक्षण की जिम्मेदारी आती है, तो वह गायें और सांड किसान के खेतों में घुसकर नष्ट करने लगते हैं। भारतीय जनता पार्टी जो यह कहती है कि गाय हमारी माता हैं, उसी पार्टी की सरकार में क्यों गौशाला खोलने की प्रक्रिया रुक गई है? क्यों किसानों के जीवन को बर्बादी के कगार पर लाकर छोड़ दिया गया है?
क्या यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक कोई और प्राकृतिक आपदा न आ जाए? क्या शासन को बेजुबान गायों और सांडों के संरक्षण का कोई रास्ता नहीं दिखाई देता? किसान बस एक ही सवाल पूछता है—क्या कभी गौशालाओं का निर्माण होगा? कब सरकार इस समस्याओं का समाधान करेगी?
इस संकट से किसानों के दिलों में एक गहरी निराशा और गुस्सा है, और यह समय है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाए और किसानों के जीवन को इस मानसिक और आर्थिक संकट से उबारने के लिए ठोस कदम उठाए। वरना एक दिन किसान अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जाएंगे।