पोरसा – पत्रकार विनय की कलम से।
ग्राम जोटई में आयोजित ऐतिहासिक दंगल में लगभग ढाई सौ कुश्तियां लड़ी गईं, जिसमें दिल्ली के शेरा पहलवान ने 51 हजार रुपये की अंतिम कुश्ती जीतकर इस भव्य आयोजन का समापन किया। यह दंगल लगभग 700 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है और इस बार 30,000 से अधिक दर्शकों ने इस उत्सव का आनंद लिया।
दंगल का आयोजन सुबह 11 बजे से शुरू होकर देर रात 8:15 बजे तक चला, जिसमें विभिन्न श्रेणियों में कुश्तियों का आयोजन किया गया। दंगल के निर्णायक मंडल में रनजीत सिंह, महेश सिंह तोमर, ब्रजराज सिंह तोमर, शेर सिंह तोमर, और रामकुमार शर्मा जैसे सम्मानित रेफरी शामिल थे, जिन्होंने कुश्तियों का निर्णय सुनाया।
कुश्तियां विभिन्न राशि के तहत लड़ी गईं:
1 मुट्ठी बताशे व 10 रुपए की 100 कुश्तियां
₹50 की 35 कुश्तियां
₹100 की 32 कुश्तियां
₹500 की 22 कुश्तियां
₹1000 की 28 कुश्तियां
₹2000 की 15 कुश्तियां
₹4000 की 8 कुश्तियां
₹5000 की 15 कुश्तियां
₹10000 की 2 कुश्तियां
₹11000 की 8 कुश्तियां
₹21000 की एक कुश्ती, जो बद्री पहलवान (नोयडा) और साकूरनूर (मेरठ) के बीच बराबरी पर रही।
आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण कुश्ती ₹51,000 की थी, जिसमें दिल्ली के शेरा पहलवान ने अभिनाश कानपुर को हराकर अंतिम झंडी जीतने का गौरव प्राप्त किया। इस दंगल का आयोजन ग्राम वासियों के सहयोग से हुआ, जिसमें रामरतन सिंह, गिरन्द सिंह, मुरारी सिंह, और कई अन्य प्रमुख व्यक्ति शामिल थे।
इस आयोजन में विजयी पहलवान को 80% और हारे हुए पहलवान को 20% पुरस्कार राशि दी गई। चांदी की बनी हनुमान जी की मूर्ति, जिसे ‘गुंज’ कहते हैं, इस बार भी किसी पहलवान ने नहीं जीती। यह पुरस्कार उस पहलवान को दिया जाता है, जो 3 साल लगातार अंतिम कुश्ती जीतता है।
इसके अलावा, दंगल में एक महिला कुश्ती भी हुई, जिसमें महिला पहलवान ने शानदार प्रदर्शन किया। यह पुरस्कार फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र उपाध्याय कुरेठा वालों ने प्रदान किया। दंगल में कई कुश्तियां प्रायोजकों द्वारा भी करवाई गईं, जिनमें मुरारी सिंह तोमर, उम्मेद सिंह तोमर, और विष्णु सिंह तोमर का योगदान प्रमुख था।
इस आयोजन ने यह साबित कर दिया कि भारतीय कुश्ती की परंपरा आज भी जीवित है और यह समाज को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
