अमरकंटक / अनूपपुर (विनय मेहरा की रिपोर्ट)
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में गैर शैक्षणिक भर्ती प्रक्रिया को लेकर आदिवासी छात्र संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दो दिन तक जोरदार आंदोलन किया। अभ्यर्थियों ने परीक्षा केंद्रों में धांधली के आरोप लगाए, खासकर रायपुर और बिलासपुर के परीक्षा केंद्रों को लेकर। छात्रों के विरोध और संगठन के संघर्ष ने विश्वविद्यालय प्रशासन को मजबूर कर दिया कि वह भर्ती प्रक्रिया को स्थगित करे। इसके साथ ही प्रशासन ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा समेत अन्य मांगों को स्वीकार करने का भी भरोसा दिया। इस संघर्ष ने यह सिद्ध कर दिया कि एकजुटता और संघर्ष से कोई भी तानाशाही प्रणाली चुप नहीं रह सकती।
सामाजिक संगठनों की ताकत ने प्रशासन को किया झुका:
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में फर्जी भर्ती के खिलाफ आदिवासी छात्र संगठन और अन्य सामाजिक संगठनों का आंदोलन निर्णायक साबित हुआ। लगातार दो दिनों तक चले इस संघर्ष में छात्र, समाजसेवी और स्थानीय जनता की एकजुटता ने प्रशासन को झुका दिया। आंदोलन के दौरान, किसानों, मजदूरों और आदिवासी समुदाय के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यह आंदोलन केवल एक भर्ती प्रक्रिया तक सीमित नहीं था, बल्कि यह समुदाय के अधिकारों और समानता की एक बड़ी लड़ाई थी। छात्र संगठनों और समाजसेवियों ने साबित कर दिया कि अगर समाज एकजुट हो जाए, तो किसी भी भ्रष्ट व्यवस्था को चुनौती दी जा सकती है।
धांधली का आरोप, प्रशासन ने किया स्वीकार:
आंदोलन के दौरान अभ्यर्थियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए थे कि परीक्षा केंद्रों पर धांधली हो रही है। रायपुर और बिलासपुर जैसे शहरों में आयोजित परीक्षा केंद्रों को लेकर परीक्षार्थियों ने आरोप लगाया कि परीक्षा प्रक्रिया में गड़बड़ी की जा रही थी। इस आरोप के बाद छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध जताया और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। अंततः, प्रशासन को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और भर्ती प्रक्रिया को स्थगित करने का फैसला लिया। यह जीत छात्रों और आंदोलनकारियों के संकल्प और संघर्ष का परिणाम थी, जिसने प्रशासन को अपनी गलती मानने पर मजबूर किया।
आंदोलन में प्रमुख नेताओं की भूमिका:
इस ऐतिहासिक आंदोलन की सफलता में आदिवासी छात्र संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. रोहित सिंह मरावी और समाजसेवी घनश्याम सिंह, उर्फ़ चिंटू की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। इन नेताओं ने आंदोलन का नेतृत्व किया और अपनी निष्ठा, संघर्ष और धैर्य से प्रशासन पर दबाव डाला। इनकी रणनीति और एकजुटता ने न केवल आंदोलन को दिशा दी, बल्कि इसे और प्रभावशाली भी बनाया। कांग्रेस के प्रदेश प्रतिनिधि लोकेश सिंह मार्को, महेश सिंह, युवराज सिंह, और अन्य समाजसेवियों ने भी आंदोलन में भाग लिया, जिससे यह संघर्ष और मजबूत हुआ। इस संगठित संघर्ष ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर सही कारण के लिए लोग एकजुट हों, तो कोई भी ताकत उन्हें अपने हक से वंचित नहीं कर सकती।