शहडोल, मध्यप्रदेश – विनय मेहरा द्वारा प्रस्तुत…!
जब सेवा का जिक्र होता है तो अनेक संगठन सामने आते हैं, लेकिन सांझी रसोई जैसी संस्था का समर्पण और कार्यशैली अनोखी है। यह संस्था न केवल जरूरतमंदों को भोजन मुहैया कराती है, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए ऐसी पहलें करती है, जिनसे जीवन में एक नई उम्मीद और समृद्धि की किरण जुगती है। 1 जनवरी 2020 में पांच दोस्तों ने जब सांझी रसोई की शुरुआत की थी, तब किसी को भी अंदाजा नहीं था कि यह संस्था इतनी बड़ी मिसाल बनेगी। आज यह संस्था शहडोल के लगभग हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही है और 700 से ज्यादा स्वयंसेवकों की मदद से शहडोल व आसपास के क्षेत्रों में बदलाव की बयार फैला रही है। आइए, जानते हैं उन 18 विशेष पहलुओं के बारे में, जो सांझी रसोई ने समाज के प्रति अपने योगदान में किए हैं।
सांझी रसोई की हर पहल निरंतरता, समर्पण और विश्वास के साथ चलती रहती है। यह संस्था केवल कुछ समय के लिए सेवा नहीं करती, बल्कि यह लगातार समाज के विभिन्न वर्गों की मदद करने के लिए एक प्रतिबद्धता के रूप में काम करती है। चाहे वह प्रतिदिन का भोजन वितरण हो या विशेष अभियान, हर कार्य में निरंतरता और गुणवत्ता की बराबरी रही है।
सांझी रसोई का लक्ष्य केवल आज के दिन की मदद करना नहीं है, बल्कि इसे समाज में एक स्थायी और स्थिर बदलाव लाने का प्रयास करना है। यही कारण है कि संस्था की सभी पहलें, जैसे कि भोजन सेवा, खुशियों की दिवाली, कंबल वितरण, कोविड राहत अभियान, रक्तदान अभियान, सौर ऊर्जा वितरण, पौधारोपण, वृद्ध आश्रम सेवा आदि, निरंतर चलती रहती हैं। इन सभी प्रयासों के जरिए, सांझी रसोई ना सिर्फ तत्काल राहत देती है, बल्कि इसके कार्य समाज के विकास के लिए दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ते हैं।
संस्था द्वारा की जा रही सामाजिक गतिविधियां न केवल एक दिन की घटना होती हैं, बल्कि यह लंबी अवधि तक चलने वाली योजनाएं हैं, जो जरूरतमंदों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। हर पहल में निरंतरता दिखती है, जिससे लोगों को यह भरोसा होता है कि सांझी रसोई हमेशा उनके साथ खड़ी है।
समाज में बदलाव लाने के लिए निरंतरता बेहद महत्वपूर्ण है, और सांझी रसोई इस विचारधारा का पालन करते हुए हर पहल को निरंतर, समर्पण और एकजुटता के साथ लागू करती है। यही वजह है कि सांझी रसोई को समाज सेवा के क्षेत्र में एक आदर्श के रूप में देखा जाता है।
1. भोजन सेवा – “कोई न सोए भूखा” का जीवंत सपना
“कोई न सोए भूखा”—सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि सांझी रसोई की आत्मा है। इस संस्था की नींव ही इसी भावना पर रखी गई कि किसी भी व्यक्ति को भूख की पीड़ा न सहनी पड़े। हर सुबह 8:30 बजे, संस्था के समर्पित सदस्य शहडोल की सब्जी मंडी पहुंचकर ताजे और पोषणयुक्त सब्जियां एकत्र करते हैं। इसके बाद 9:00 बजे से लेकर दोपहर 1:00 बजे तक आठ सदस्यीय कार्यकर्ता दल, जिसमें कई स्वयंसेवक भी शामिल रहते हैं, पूरे मनोयोग से भोजन तैयार करता है।

भोजन की गुणवत्ता, सफाई और पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कोई भी व्यक्ति जाति, धर्म या वर्ग के भेदभाव से परे इस भोजन सेवा का लाभ उठा सकता है। इस मानवीय कार्य में संस्था ने बीते 5 वर्षों में 14 लाख से अधिक लोगों को गरम, ताजा और पौष्टिक भोजन कराया है। यह न केवल भूख मिटाने का कार्य है, बल्कि यह आत्मसम्मान के साथ किसी के पेट की आग को बुझाने का पुण्य प्रयास है। प्रति वर्ष लगभग 1.6 लाख लोगों को निरंतर भोजन सेवा देना संस्था के अनुशासन, प्रतिबद्धता और सेवा भावना का प्रमाण है।
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2. खुशियों की दिवाली – उपकरणों के माध्यम से मुस्कान
दिवाली वह पर्व है, जब हर घर में रोशनी होती है—लेकिन कुछ घरों में केवल अंधेरे की विरासत बचती है। सांझी रसोई ने इस खाई को पाटने के लिए “खुशियों की दिवाली” नामक एक अद्भुत मुहिम चलाई। इस पहल के तहत संस्था शहरवासियों से ऐसे पुराने घरेलू उपकरण—जैसे मिक्सर, पंखे, प्रेस आदि एकत्र करती है, जो उपयोग तो लायक होते हैं, पर घरों में बेकार पड़े रहते हैं।

इन उपकरणों को तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से मरम्मत कराकर फिर सिर्फ ₹5 के प्रतीकात्मक शुल्क में जरूरतमंद परिवारों को दिया जाता है। यह न केवल उनके घर में सुविधाएं लेकर आता है, बल्कि उनकी दिवाली को भी रोशनी और उम्मीद से भर देता है। यह पहल दिखाती है कि किस तरह ‘कूड़े’ समझी जाने वाली चीजें किसी के जीवन में ‘कीमती तोहफे’ बन सकती हैं।
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3. सौर ऊर्जा बल्ब – आत्मनिर्भरता की ओर एक रौशनी
बिजली का बिल उन छोटे दुकानदारों के लिए सिरदर्द होता है जो गली-चौराहों पर छोटी दुकानें लगाकर अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं। सांझी रसोई ने इन छोटे व्यापारियों के आर्थिक बोझ को कम करने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले बल्बों का वितरण शुरू किया। यह पहल एक साथ ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरण सुरक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण को जोड़ती है।

सोलर बल्बों की सहायता से न केवल दुकानदार अपनी दुकानें देर रात तक रोशन रख पाते हैं, बल्कि उन्हें बिजली के खर्च से भी मुक्ति मिलती है। इस नवाचार से उनकी आमदनी में वृद्धि होती है और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है। सांझी रसोई का यह प्रयास भारत सरकार की ‘हर घर सौर’ जैसी योजनाओं के स्थानीय सहयोगी के रूप में भी देखा जा सकता है।
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4. कंबल वितरण – ठिठुरती रातों में स्नेह की गर्माहट
सर्दी की रातें गरीबों के लिए असहनीय होती हैं, खासकर जब शरीर पर पहनने को पर्याप्त कपड़े और ओढ़ने के लिए कंबल तक न हो। सांझी रसोई ने ठंड से बेहाल लोगों की मदद के लिए एक मार्मिक पहल की—कंबल वितरण अभियान। संस्था हर साल सर्दियों में ऐसे परिवारों और व्यक्तियों को चिन्हित करती है जो खुले में या अस्थायी झोपड़ियों में रहते हैं।

अब तक संस्था सैकड़ों कंबल बांट चुकी है, जिससे जरूरतमंदों को ठंड से राहत मिली है। यह सिर्फ कंबल नहीं, बल्कि सम्मान, देखभाल और मानवता का प्रतीक है। कंबल वितरण के साथ ही संस्था कभी-कभी गर्म दूध, चाय और बिस्कुट जैसी सुविधाएं भी देती है, ताकि शरीर और आत्मा दोनों को राहत मिल सके।
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5. कोविड लहर में राहत का प्रकाश स्तंभ – हर भूखे पेट तक भोजन की पहुंच
जब दुनिया भय, अनिश्चितता और संक्रमण की चपेट में थी, तब भी सांझी रसोई ने अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा। कोरोना महामारी के दौरान जब अधिकांश सेवाएं ठप थीं, लोग अस्पतालों और रेलवे स्टेशनों में फंसे हुए थे, तब इस संस्था ने “भूख से कोई न लड़े” का संकल्प दोहराया। संस्था ने दिन-रात एक कर सरकारी व निजी अस्पतालों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, कोविड सेंटर और आसपास के गांवों तक निःशुल्क भोजन पहुंचाया।
इस संकट काल में सांझी रसोई ने रोजाना औसतन 6000 से अधिक जरूरतमंदों को भोजन कराया। विशेष रूप से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से गुजर रहे प्रवासियों को 33 से अधिक ट्रेनों में भरपेट भोजन पहुंचाया गया—वो भी बिना किसी सरकारी अनुदान के। यह सेवा शहडोल नगर ही नहीं, पूरे मध्यप्रदेश में एक अनुकरणीय उदाहरण बनी।
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6. राशन सेवा – घर-घर राहत की डोरी
कोविड के समय जब काम-धंधे बंद थे, हजारों परिवारों के चूल्हे बुझ चुके थे। सांझी रसोई ने न केवल पके भोजन की व्यवस्था की, बल्कि “राशन सेवा – एक पहल” नाम से एक विशेष मुहिम चलाई। इसके तहत संस्था ने हजारों परिवारों को सूखा राशन किट प्रदान किया जिसमें आटा, चावल, दाल, तेल, मसाले और आवश्यक घरेलू सामग्री शामिल थी।
संगठन की टीम घर-घर जाकर इन पैकेट्स को उन तक पहुंचाती थी जो खुद आने में असमर्थ थे। यह सेवा विशेष रूप से उन लोगों के लिए थी जो महामारी के कारण बेरोजगार हो चुके थे या बुजुर्ग, विधवा, दिव्यांग आदि के कारण स्वयं राशन लाने में असमर्थ थे।
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7. ग्रीष्मकालीन सेवा – तपती दोपहर में राहत की बूँद
जहाँ एक ओर गर्मियों में हर कोई ठंडक की तलाश करता है, वहीं गरीब तबके के लोग—जैसे रिक्शा चालक, रेहड़ी-पटरी वाले, मजदूर—झुलसती दोपहर में अपने परिवार का पेट पालने के लिए संघर्ष करते हैं। सांझी रसोई ने उनके लिए “ग्रीष्मकालीन सेवा” के अंतर्गत गमछे, ठंडा पानी और शरबत की मुफ्त व्यवस्था की।

संस्था ने थर्मस में भरकर शरबत और पानी उन जगहों पर पहुंचाया जहाँ गरीब और श्रमिक समुदाय कार्य करते हैं। इसके साथ-साथ उन्हें धूप से बचाव के लिए गमछा भी भेंट किया गया। यह एक छोटी-सी पर बहुत प्रभावशाली पहल थी, जिसने सैकड़ों मेहनतकशों को ताजगी और सम्मान का एहसास कराया।
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8. बेजुबानों की सेवा – पक्षियों के लिए दाना-पानी
सांझी रसोई की संवेदनशीलता केवल मानव सेवा तक सीमित नहीं है। संस्था ने पक्षियों के लिए भोजन और जल की व्यवस्था कर एक अनूठी मिसाल कायम की। गर्मियों और अन्य मौसमों में जब पेड़ों की कटाई और जल संकट के कारण पक्षियों के लिए जीना मुश्किल हो जाता है, तब यह संस्था शहर के चार प्रमुख स्कूलों और अन्य सार्वजनिक स्थलों में पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था करती है।

विशेष रूप से तैयार फीडिंग सेटअप्स लगाए गए जिनमें भरपूर अनाज और साफ पानी भरा जाता है। संस्था यह मानती है कि प्रकृति के हर जीव का जीवन की मूलभूत सुविधाओं पर बराबरी का अधिकार है, और इसी सोच को कार्यरूप में बदलती है यह पहल।
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9. बहनों की शादी – सिर्फ सहयोग नहीं, सम्मान भी
वर्ष 2021 में सांझी रसोई ने सेवा की परिभाषा को और व्यापक बनाते हुए दो आर्थिक रूप से कमजोर बहनों की शादी में सम्पूर्ण सहयोग प्रदान किया। सिर्फ खानपान ही नहीं, बल्कि संस्था ने गृहस्थी का पूरा सामान भी भेंट किया—जिसमें पलंग, बर्तन, कपड़े, गद्दे, फर्नीचर से लेकर जरूरत के हर सामान तक की व्यवस्था थी।

यह केवल एक विवाह नहीं था, बल्कि समाज के सामने यह उदाहरण प्रस्तुत करने का एक प्रयास था कि अगर समाज मिलकर हाथ बढ़ाए, तो कोई बेटी बोझ नहीं, बल्कि गर्व बन जाती है। यह कार्य अपने आप में संवेदनशीलता, समर्पण और सामाजिक जिम्मेदारी का अनमोल संगम था।
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10. गौसेवा – बेजुबानों के लिए भी संवेदनशीलता
सांझी रसोई की सेवा भावना बेजुबान जानवरों तक भी पहुंचती है। संस्था ने समय-समय पर बेसहारा गायों और अन्य मवेशियों के लिए फल, सब्जियां, हरा चारा और दवाइयां वितरित की हैं। खास अवसरों जैसे गोकुल अष्टमी, पोला पर्व आदि पर संस्था ने सैकड़ों गायों को पौष्टिक आहार देकर उनके प्रति स्नेह का परिचय दिया।

संस्था यह मानती है कि गायें भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं और उनका सेवा-संवर्धन समाज की सच्ची समृद्धि है। इस पहल के अंतर्गत स्थानीय गौशालाओं और सड़कों पर विचरण कर रही गायों तक पहुंचकर उन्हें राहत दी जाती है।
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11. दिव्यांग बच्चों के प्रति संवेदनशीलता – विशेष बच्चों की विशेष सेवा
जब बात मानवता की होती है, तो सांझी रसोई की दृष्टि उन बच्चों पर भी जाती है जो विशेष आवश्यकता वाले हैं—दिव्यांग, लेकिन संवेदनशील और प्रतिभावान। संस्था समय-समय पर दिव्यांग विद्यालयों में पहुंचकर बच्चों को आवश्यक सामग्री जैसे कंबल, गर्म कपड़े, स्टेशनरी, स्वच्छता सामग्री और पोषण से भरपूर खाद्य पदार्थ भेंट करती है।

यह न केवल एक सेवा है, बल्कि उन बच्चों के आत्म-सम्मान को पुष्ट करने का प्रयास है। संस्था इन बच्चों के साथ समय भी बिताती है, उन्हें प्रेरित करती है, और यह सुनिश्चित करती है कि वे समाज की मुख्यधारा से कटे नहीं, बल्कि सम्मान के साथ उसमें शामिल रहें। यह पहल दर्शाती है कि सांझी रसोई सिर्फ पेट नहीं, आत्मा को भी भोजन देती है।
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12. चिकित्सा शिविर – स्वास्थ्य सेवा में मानवता की रोशनी
सिर्फ भोजन ही नहीं, सांझी रसोई का मानना है कि स्वास्थ्य भी हर व्यक्ति का अधिकार है। इसी उद्देश्य से संस्था हर वर्ष विभिन्न प्रकार के चिकित्सा शिविरों का आयोजन करती है। वर्ष 2021 में संस्था ने त्वचा रोग व कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टरों को आमंत्रित कर निःशुल्क परामर्श शिविर का आयोजन किया, जिसमें सैकड़ों मरीजों ने जांच करवाई।

इन शिविरों में ब्लड प्रेशर, शुगर टेस्ट, स्किन चेकअप, कैंसर स्क्रीनिंग, नेत्र परीक्षण जैसी सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। संस्था की योजना है कि हर वर्ष किसी न किसी रोग को केंद्र में रखते हुए यह सेवा जारी रखी जाए। यह सेवा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध हो रही है, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं अब भी दुर्लभ हैं।
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13. पौधारोपण – हरियाली की ओर बढ़ता कदम
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सांझी रसोई का योगदान भी उल्लेखनीय है। संस्था ने “पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ” अभियान के तहत अभी तक लगभग 20,000 फलदार व छायादार वृक्षों का रोपण किया है। न केवल पौधारोपण, बल्कि उनकी देखभाल, सिंचाई और संरक्षण की भी पूरी व्यवस्था की जाती है।
यह कार्य सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक हरित संस्कार की तरह किया जाता है। स्कूली बच्चों, कॉलेज युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों को भी इस मुहिम से जोड़ा गया है, ताकि प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी और प्रेम की भावना विकसित हो सके। संस्था की आगामी योजना में 5,000 नए पौधे लगाने का लक्ष्य शामिल है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ, सुंदर और शुद्ध वातावरण का आधार बनेगा।
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14. रक्तदान – जीवनदान का महाअभियान
“रक्तदान – महादान” की भावना को साकार करते हुए सांझी रसोई प्रत्येक वर्ष रक्तदान शिविरों का भव्य आयोजन करती है। इस अभियान में सैकड़ों युवा, शिक्षक, व्यापारी और गृहणियाँ बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। संस्था रक्तदाताओं को प्रशस्ति-पत्र और सम्मानचिह्न प्रदान कर उन्हें सामाजिक नायक के रूप में मान्यता देती है।

संग्रहित रक्त को शहडोल जिला ब्लड बैंक के माध्यम से जरूरतमंद मरीजों तक पहुंचाया जाता है, जिससे समय पर रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। कैंसर, थैलेसीमिया, डिलीवरी केस व आपातकालीन मरीजों के लिए यह रक्त किसी वरदान से कम नहीं होता। सांझी रसोई का यह अभियान समाज में स्वैच्छिक रक्तदान की संस्कृति को मजबूत कर रहा है, और यही कारण है कि आज शहडोल रक्तदान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहा है।
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15. वृद्धाश्रम सेवा – सम्मान की एक नई परिभाषा
जब समाज के बुजुर्गों के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता, तब सांझी रसोई उनका सहारा बनती है। संस्था ने वृद्धाश्रमों में जाकर वहाँ रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों को भरपेट भोजन, कंबल, गर्म कपड़े, और आवश्यक दवाइयां प्रदान की हैं। इस पहल का उद्देश्य केवल उनके शारीरिक भरण-पोषण की चिंता करना नहीं है, बल्कि उन्हें यह महसूस कराना है कि वे समाज के प्रति अनमोल हैं और उनका सम्मान किया जाता है।

सांझी रसोई की टीम वृद्धाश्रमों में नियमित रूप से जाती है, जहाँ बुजुर्गों से बातचीत करती है, उन्हें मानसिक और भावनात्मक सहारा देती है। यह सेवा यह दर्शाती है कि एक सभ्य समाज में बुजुर्गों का स्थान सिर्फ अपने घरों में नहीं, बल्कि समाज के दिल में भी होता है।
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16. सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया जागरूकता – जीवन की राह में उम्मीद की किरण
सांझी रसोई न केवल प्रत्यक्ष सेवा, बल्कि समाज में स्वास्थ्य संबंधित जागरूकता फैलाने में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है। संस्था ने सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया जैसे गंभीर रक्त विकारों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कई विशेष अभियान चलाए हैं। इन बच्चों और उनके परिवारों की स्थिति को समझते हुए, संस्था ने स्वास्थ्य कैंप्स आयोजित किए, जिनमें मरीजों को हैमोग्लोबिन टेस्ट, HLA टेस्ट और ब्लड डोनेशन की सेवाएं दी गईं।
इस पहल के तहत सांझी रसोई ने स्थानीय समुदाय को इन बीमारियों के प्रभाव, लक्षण और उपचार के बारे में बताया, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस पर सही समय पर ध्यान दे सकें। इससे न केवल बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ी, बल्कि इन बच्चों के इलाज की दिशा में भी प्रभावी कदम उठाए गए।
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17. रक्त जागरूकता प्रश्नोत्तरी – समाज में जागरूकता का नया कदम
सांझी रसोई ने रक्तदान के महत्व को बढ़ावा देने के लिए एक अनूठा प्रयास किया, जिसे रक्त जागरूकता प्रश्नोत्तरी नामक कार्यक्रम के तहत आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम विशेष रूप से शहडोल जिले के स्कूली बच्चों के लिए था, जिसमें उन्हें रक्तदान के महत्व और इसके सही उपयोग के बारे में जानकारी दी गई।
इस पहल में बच्चों ने रक्तदान से संबंधित सवालों का उत्तर दिया और साथ ही रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए शपथ भी ली। सांझी रसोई का यह प्रयास रक्तदान को एक सामान्य और ज़रूरी कार्य के रूप में स्थापित कर रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ भी इस सेवा को अपना सकें।
यह कार्यक्रम न केवल बच्चों को शिक्षित करता है, बल्कि उन्हें एक सक्रिय नागरिक बनाने की दिशा में भी काम करता है, जो समाज के लिए योगदान देने को तत्पर रहे।
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18. मृत्यु पश्चात डीप फ्रीजर की व्यवस्था – मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति
अंतिम संस्कार या मृत्यु के बाद शव को संरक्षित रखना एक संवेदनशील मुद्दा होता है, खासकर जब परिवार के पास पर्याप्त संसाधन न हो। इस समस्या का समाधान प्रदान करने के लिए सांझी रसोई ने एक अनोखी पहल शुरू की है, जिसमें मृत्यु पश्चात शव को डीप फ्रीजर में संरक्षित करने की व्यवस्था की जाती है।

कभी किसी दूरदराज इलाके से शव को लाने में समय लगता है, तो कभी पारिवारिक सदस्य अंतिम संस्कार की तैयारियों में व्यस्त होते हैं। ऐसे समय में सांझी रसोई की यह सेवा एक अमूल्य सहारा साबित होती है। संस्था शव को सुरक्षित रखने के लिए न केवल डीप फ्रीजर की व्यवस्था करती है, बल्कि शव के परिवहन के लिए भी सहायता प्रदान करती है, ताकि अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बिना किसी परेशानी के संपन्न हो सके।
यह पहल एक अनकहा प्यार और सहायता का प्रतीक है, जो दुःख की घड़ी में परिवारों के लिए उम्मीद की एक किरण बनकर उभरती है। सांझी रसोई यह सुनिश्चित करती है कि समाज के सभी वर्गों को, चाहे वह जीवन का अंतिम चरण हो या कोई अन्य कठिनाई, सहयोग मिले।
