भगवान बदरीनाथ अब 6 महीने घृत कंबल में लिपटे रहेंगे।
भगवान बदरीनारायण को जो घृत कंबल ओढ़ाया जाता है, उसे माणा गांव की महिलाएं और कन्याएं मिलकर तैयार करती हैं…
उत्तराखंड का बदरीनाथ धाम…
भगवान विष्णु का ये धाम जितना विशेष है, उतनी ही विशेष हैं इस धाम से जुड़ी मान्यताएं।
25 नंवमबर को बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जायेंगे ।
बदरीश पंचायत (बदरीनाथ गर्भगृह) से उद्धव जी और कुबेर जी की उत्सव मूर्ति योग ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर के लिए प्रस्थान करेगी।
बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दौरान भगवान बदरीविशाल जी को विशेष घृत कंबल से लपेटा जाएगा।
बदरीनाथ में ये परंपरा सदियों से निभाई जाती रही है। चलिए आज इस खास परंपरा और इसके महत्व के बारे में आपको बताते हैं।भगवान बदरीनाथ को ओढ़ाया जाने वाला घृत कंबल माणा गांव की कन्याएं और सुहागिन तैयार करती हैं।
कंबल बनाने की प्रक्रिया भी बेहद खास है। कंबल बनाने के लिए शुभ दिन चुना जाता है।
कार्तिक माह में शुभ दिन पर माणा गांव की महिलाएं इस कंबल को तैयार करती हैं।
महिलाएं ऊन को कातकर सिर्फ एक दिन के भीतर कंबल तैयार करती हैं। ये काम पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है।
जिस दिन कंबल बनाना होता है उस दिन महिलाएं और कन्याएं उपवास रखती हैं।
कंबल तैयार होने के बाद कार्तिक माह में शुभ दिन निकाला जाता है और इस शुभ दिन पर माणा गांव वाले ये कंबल बदरी- केदार मंदिर समिति को सौंप देते हैं।
जिस दिन मंदिर के कपाट बंद होते हैं, उस दिन मंदिर के मुख्य पुजारी रावल इस कंबल पर गाय के घी और केसर का लेप लगाकर इससे भगवान बदरीनाथ को ढक देते हैं,
ताकि उन्हें ठंड ना लगे। ग्रीष्मकाल में जब भगवान बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं तो इस कंबल को महाप्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है।
एक दिन पहले धार्मिक परंपरानुसार रावल जी ने माता लक्ष्मी का वेश धारण कर लक्ष्मी जी की प्रतिमा को बदरीनाथ गर्भगृह में रखा जायेगा और माणा गांव की महिलाओं द्वारा बनाए कंबल पर घी का लेपन कर इसे भगवान बदरीनाथ जी को ओढ़ाया जायेगा।
अब आने वाले 6 महीने भगवान बदरीनाथ इसी घृत कंबल में विराजमान रहेंगे।

