शहडोल, मध्यप्रदेश | 22 मई 2025
ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में भारतीय संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने के प्रयास को रोकने की कथित कोशिशों ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। यह मामला तब गरमा गया जब बार काउंसिल के कुछ सदस्यों और अधिवक्ता तिलोत्तमा पाठक तथा वकील नील मिश्रा द्वारा प्रतिमा स्थापना का विरोध किया गया। आरोप है कि उन्होंने न सिर्फ इसका विरोध किया, बल्कि नील मिश्रा ने यह तक कह दिया कि “मूर्तियाँ ही नहीं बचेंगी”, जो एक सीधा अपमान है।

भीम आर्मी भारत एकता मिशन, ज़िला इकाई शहडोल ने इस मामले में सख़्त नाराज़गी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति तथा मध्यप्रदेश सरकार से गुहार लगाई है कि दोषियों के विरुद्ध SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम, धारा 153A एवं 295A के तहत तत्काल कानूनी कार्यवाही की जाए। साथ ही, उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया से मांग की है कि ऐसे जातिवादी मानसिकता वाले वकीलों की वकालत की मान्यता रद्द की जाए।
ज्ञापन में बताया गया कि शांतिपूर्ण ढंग से प्रतिमा स्थापना के समर्थन में जुटे भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की गई, जो एक सुनियोजित और जातिवादी हमला है। इस कृत्य को देश के संविधान और सामाजिक न्याय के मूल्यों पर हमला बताया गया है।

प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की प्रतिमा उच्च न्यायालय परिसर में शीघ्र स्थापित की जाए।
जातिगत विद्वेष फैलाने वाले वकीलों की पहचान कर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ऐसे अधिवक्ताओं की वकालत की मान्यता समाप्त करे।
बाबा साहेब के अपमान के लिए दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए।
ज्ञापन सौंपने वालों में शामिल हैं:
यह मुद्दा केवल एक प्रतिमा स्थापना का नहीं, बल्कि संविधान, समानता और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक बन चुका है। अब देखना होगा कि न्यायपालिका और राज्य सरकार इस पर क्या रुख अपनाते हैं। यदि समय रहते सख़्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह मुद्दा और अधिक व्यापक आंदोलन का रूप ले सकता है।

