रिपोर्टर: कल्पना तिवारी गुढ़/ रीवा। पिछले कुछ दिनों से बदले मौसम की वजह से बिजली आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित हो गई है। मामूली हवा शुरू होते ही बिजली कंपनी लाइन को तुरंत बंद कर देती है। यह हाल गुढ़ बस नहीं ये रीवा जिले के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं बल्कि शहर में भी है। दिन भर में 8 से 10 दफा बिजली कट होती है। कई बार तो एक से डेढ़ घंटे तक बिजली बंद रहती है। जबकि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी प्री मानसून मेंटीनेंस में करोड़ों रुपये फूक दिये गये हैं। लेकिन यह मेंटीनेंस मामूली हवा का झोका भी नहीं झेल पा रहा है।गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से बादल छाते ही हवाओं का दौर शुरू हो जाता है। इन हवाओं के शुरू होते ही ग्रामीण इलाकों सहित शहर के अधिकांश क्षेत्र की लाइट कंपनी द्वारा बंद कर दी जाती है। बार-बार बिजली अने और जाने के कारण आम लोगों सहित व्यापारियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गुढ़ सहित जिले वासियों का कहना है कि गत एक सप्ताह से  बिजली कंपनी ने करीब 40 से 50 बार कई घंटों तक लाइट को बंद किया है। गौरतलब है कि ट्रिपिंग के मामले में रीवा प्रदेश भर में अब्बल दरों में है। शहर के कई क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहां पर घंटों बिजली आपूर्ति ठप रहती है।शिकायत करने पर पता चलता है कि मौसम खराब होने की वजह से फाल्ट आ गया है, जिसे सुधारने का काम चल रहा है। लेकिन यहा बड़ा सवाल यह है कि जब बिजली कंपनी प्री मानसून मेंटीनेंस में हर साल करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाती है तो फाल्ट कहा हो रहे हैं। लेकिन इस सवाल का जबाव अधिकारियों के पास नहीं है।*मेंटीनेंस के नाम पर खानापूर्ति-:*मानसून के पहले बिजली कंपनी द्वारा सालाना मेटेनेस कार्य किया जाता है। इस बार भी कंपनी द्वारा मेंटेनेस के नाम पर खानापूर्ति की गई है। इसमें कंपनी के उपकरण, कुछ ट्रांसफर्मर और तार भी लगा दिया, लेकिन परेशानी हल नहीं हुई है। कंपनी के कर्मचारियो के अलावा हजारों रुपए मैन्टेनेन्स में लेवर पर ही खर्च हो गए है। साथ ही शासन-प्रशासन निर्वाध विद्युत आपूर्ति के निर्देशों के बाद भी इस समस्या से निजात नहीं मिला मेंटीनेंस ठीक से न होने की वजह से यह समस्या बनी हुई है। बार-बार बिजली जाने से गुढ़ सहित ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही जिले के आम लोगों, व्यापारियों और सरकारी कार्यालय के कर्मचारियों को अपना काम करने में परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है ।

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MPEB का यह कैसा मेंटीनेंसः जो हवा का झोंका तक नहीं झेल पा रहा


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