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समन (मध्यप्रदेश), 28 जून 2025: 
समन क्षेत्र स्थित अम्मा धम्मा बौद्ध विहार की भूमि पर प्रशासन द्वारा जबरन जेसीबी मशीन चलवाकर अवैध निर्माण कार्य कराए जाने के विरोध में स्थानीय लोगों ने एक बार फिर ज़बरदस्त विरोध दर्ज कराया है। शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन के एक महीने और एक दिन बाद 28 जून को प्रशासन ने बिना किसी सूचना, नोटिस या भूमि स्वामी की सहमति के निर्माण कार्य शुरू कराया, जिससे आक्रोश की लहर फैल गई।
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“यह कौन सा कानून है?” — भूमि स्वामी नारायण चौधरी का सवाल
इस पूरी कार्रवाई को लेकर भूमि स्वामी नारायण चौधरी ने गहरी नाराजगी जताते हुए कहा:
> “भारत में ऐसा कौन सा कानून बन गया है कि बिना नोटिस, बिना सहमति, और बिना कानूनी प्रक्रिया के मेरी भूमि पर बने बौद्ध विहार में जबरन जेसीबी चलाकर निर्माण कराया जाए? यह सीधी सरकारी अराजकता है।”
स्थानीय नागरिकों ने भी इस कार्रवाई को धार्मिक स्वतंत्रता और भूमि अधिकारों पर सीधा हमला बताते हुए ज़ोरदार विरोध किया। पुलिस ने मौके पर पहुंचे प्रदर्शनकारियों को डिटेन किया और विरोध के बावजूद जेसीबी से कार्य जारी रखा गया।

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प्रशासन पर गंभीर कानूनी उल्लंघनों का आरोप
धरने पर बैठे लोगों ने 2013 के भू-अर्जन अधिनियम और संविधान की कई धाराओं के उल्लंघन की बात उठाई है। उन्होंने बताया कि:
अधिनियम की धारा 21, 12, 11, 4, 41 और संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29, 30, 300 (क) का खुलेआम उल्लंघन किया गया है।
ग्राम पंचायत को कोई प्रस्ताव या सूचना नहीं दी गई, न ही सरपंच को जानकारी थी।
कार्यपालन यंत्री द्वारा यह लिखित आश्वासन दिया गया था कि निर्माण धार्मिक स्थल से होकर नहीं जाएगा — फिर भी बौद्ध विहार के अंदर निर्माण क्यों?
भूमि अल्पसंख्यक बौद्ध समुदाय के सामाजिक-शैक्षिक कार्यों के लिए आरक्षित थी।
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न्यायालय में मामला लंबित, फिर भी जबरदस्ती
यह प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय में विचाराधीन है, बावजूद इसके प्रशासन ने कोर्ट की प्रक्रिया का इंतज़ार किए बिना कार्रवाई शुरू कर दी। इससे सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या कानूनी प्रक्रिया की अब कोई अहमियत नहीं बची?
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विरोध को दबाने की कोशिश, लेकिन आवाज़ बुलंद
पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को डिटेन करने और भारी संख्या में सुरक्षा बल लगाकर जेसीबी से काम चालू रखने की कार्रवाई को ग्रामीणों ने “सत्ता का दुरुपयोग” बताया है।
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बिना सूचना, बिना सहमति और धार्मिक स्थल पर जबरन निर्माण — यह मामला अब सिर्फ भूमि विवाद नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र की जवाबदेही से जुड़ चुका है। देखना होगा कि प्रशासन अब इस पर क्या सफाई देता है और न्यायालय क्या दिशा देता है।
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