डिंडोरी / बजाग (कमलेश पाठक की रिपोर्ट।
संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए माताओं ने शनिवार को हर छठ का व्रत रखा। इस विशेष दिन पर माताओं ने भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना की और सामूहिक रूप से हर छठ की पूजा की।
पूजन विधि और सामग्री
माताओं ने महुआ के दातुन का उपयोग किया और महुआ के पत्ते से पत्तल और दोने बनाकर पूजा की। भैंस के गोबर, दूध, घी, और दही का भी पूजन में उपयोग किया गया। कुश और पलाश के नीचे भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियों की स्थापना कर विधिपूर्वक पूजा की गई। बांस की छोटी-छोटी टोकनी भी पूजन में उपयोग की गई।
हर छठ का महत्व और परंपराएं
हर छठ, कृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पहले मनाया जाता है और इसे हर हलषष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। माताएं इस दिन अपने पुत्र की लंबी आयु और संपन्नता के लिए व्रत रखती हैं। इस अवसर पर बम्हुलिया गीत, ढोलक, मृदंग आदि के साथ धार्मिक गीत गाए जाते हैं। शाम को पूजन के बाद, महुआ को पका कर भैंस के दूध और दही के साथ पसी के चावल पकाए जाते हैं, जिन्हें माताएं प्रसाद के रूप में खाती हैं।
इस प्रकार, हर छठ का व्रत समर्पण और भक्ति के साथ पूर्ण किया जाता है, और माताएं अपने पुत्रों के उज्जवल भविष्य के लिए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
