📍 स्थान: शहडोल, मध्यप्रदेश | दिनांक: 5 जुलाई 2025
शहडोल जिले में स्थित ऐतिहासिक मोहन राम मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार धार्मिक नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के कारण। मंदिर परिसर की दक्षिणी दीवार शनिवार को अचानक ढह गई, जिससे न सिर्फ सुरक्षा संकट पैदा हो गया है, बल्कि आगामी बारिश के कारण बाढ़ जैसी स्थिति की भी आशंका बन गई है।
स्थानीय प्रशासन के अनुसार, यह दीवार 2017 में उस निर्माण का हिस्सा थी, जिसका उद्घाटन 14 मई 2017 को बड़े पैमाने पर किया गया था। इस निर्माण कार्य पर लगभग ₹2.5 करोड़ की लागत आई थी, जिसमें भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। कमिश्नर शहडोल द्वारा उस समय जांच कराई गई और अनियमितताएं प्रमाणित भी हुईं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब वही दीवार मात्र आठ वर्षों में जमींदोज हो चुकी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बारिश तेज हुई तो बुढार चौराहे से मुड़ना नदी तक बहाव का पानी बाजार क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है, जिससे शहडोल शहर के प्रमुख हिस्से जलभराव और जनधन हानि का सामना कर सकते हैं।

मामले में एक और चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2012 में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने मंदिर ट्रस्ट संचालन के लिए एक स्वतंत्र कमेटी को प्रभार सौंपने का आदेश दिया था, जिसे अब तक लागू नहीं किया गया। मंदिर का संचालन कथित रूप से एक स्वयंभू “मैनेजर” द्वारा निजी कब्जे और बाहुबल के बल पर किया जा रहा है, जो न्यायिक आदेश की खुली अवहेलना है।
मंदिर परिसर में बनीं अन्य संरचनाएं, जैसे कि मोहन राम तालाब के फव्वारे, छतरियाँ, चिप पत्थर और कुर्सियाँ भी विगत वर्षों में नष्ट हो चुकी हैं या अज्ञात तत्वों द्वारा क्षतिग्रस्त कर दी गई हैं। इनकी मरम्मत या सुरक्षा के लिए न तो कोई निगरानी व्यवस्था है और न ही जवाबदेही तय की गई है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से भी मामला संवेदनशील हो गया है, क्योंकि हाल ही में आयोजित रथयात्रा समिति में भारतीय जनता पार्टी का सीधा प्रभुत्व रहा। ऐसे में विपक्षी दल और स्थानीय नागरिक सवाल उठा रहे हैं कि क्या मंदिर ट्रस्ट की दुर्दशा और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के लिए सत्ताधारी दल को उत्तरदायी ठहराया जाए?
स्थानीय जनता का कहना है कि “रामराज्य” के नाम पर किए गए वादों की पोल अब खुद टूटती दीवारों और बहते फव्वारों से खुल रही है।
फिलहाल, मंदिर परिसर का मलबा हटाए जाने की कोई आधिकारिक योजना नहीं है। जब तक मलबा नहीं हटता, जनता को न सिर्फ रास्ता तलाशना होगा, बल्कि अपने सवालों के जवाब भी उसी मलबे में खोजने होंगे।
