NTPC गाडरवारा: पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी की मिसाल

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NTPC गाडरवारा: पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी की मिसाल

गाडरवारा ।  दूरदर्शिता और ज़िम्मेदारी का एक अनुकरणीय उदाहरण पेश करते हुए, NTPC गाडरवारा पर्यावरणीय अनुपालन के क्षेत्र में एक नया मानक स्थापित कर रहा है। यह संयंत्र फ्यूल गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) प्रणाली को अनिवार्य समय-सीमा से काफी पहले स्थापित कर रहा है, जबकि क्षेत्र की वायु गुणवत्ता में सल्फर ऑक्साइड (SOₓ) का योगदान नगण्य है।

सल्फर ऑक्साइड्स (विशेषकर सल्फर डाइऑक्साइड – SO₂) जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्पन्न होते हैं और अत्यधिक मात्रा में ये पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। लेकिन गाडरवारा की कहानी इससे बिल्कुल अलग है। संयंत्र के पूर्ण भार पर चलने के बावजूद चिमनी से उत्सर्जन आंखों से दिखाई नहीं देता — जो इस बात का प्रमाण है कि NTPC गाडरवारा में लगा इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर सिस्टम अत्याधुनिक और अत्यंत प्रभावी है। कूलिंग टावर से उठती जलवाष्प और बॉयलर से निकलती भाप को अक्सर आमजन द्वारा प्रदूषण समझ लिया जाता है, जबकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है।
विस्तृत वायु गुणवत्ता निगरानी से यह स्पष्ट होता है कि चिमनी से निकलने वाले उत्सर्जन तेजी से फैल जाते हैं और आस-पास की वायु गुणवत्ता पर कोई महत्वपूर्ण असर नहीं डालते। संयंत्र और आस-पास के नगरों में स्थापित विभिन्न निगरानी स्टेशनों से प्राप्त सतत निगरानी डेटा के अनुसार, क्षेत्र में SO₂ की औसत सांद्रता 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m³) से भी कम रहती है — जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा निर्धारित वार्षिक (50 µg/m³) और दैनिक (80 µg/m³) सीमाओं से काफी कम है।
NTPC के एक अधिकारी ने बताया, “हम FGD सिस्टम अनिवार्यता के कारण नहीं, बल्कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की दिशा-निर्देशों के साथ तालमेल बिठाने के लिए लगा रहे हैं। मंत्रालय ने श्रेणी C क्षेत्रों (जैसे गाडरवारा) के लिए FGD की समय-सीमा 2030 निर्धारित की है, लेकिन हम प्रतिक्रियाशील नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।”
भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा सामान्यतः बेहद कम होती है (केवल 0.2% से 0.5% तक), फिर भी NTPC ने इसे और घटाने तथा पर्यावरण को और स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से 601 करोड़ रुपये का बड़ा निवेश किया है।
CSIR-NEERI (राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों द्वारा अप्रैल 2024 में किए गए एक स्वतंत्र आकलन में भी यह निष्कर्ष निकाला गया कि NTPC गाडरवारा का SOₓ उत्सर्जन में योगदान नगण्य है। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि संयंत्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित क्षेत्रों में भी SO₂ का स्तर लगभग समान है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि संयंत्र का पर्यावरण पर प्रभाव अत्यल्प है।
FGD प्रणाली का कमीशनिंग कार्य प्रगति पर है, जिसमें यूनिट 2 के सितंबर 2025 तक और यूनिट 1 के दिसम्बर 2025 तक चालू होने की उम्मीद है। पूर्ण संचालन के बाद, FGD प्रणाली SOₓ उत्सर्जन को घटाकर 100 mg/Nm³ से नीचे ले आएगी, जिससे इनका उत्सर्जन प्रोफ़ाइल पर प्रभाव लगभग समाप्त हो जाएगा।
NTPC के एक पर्यावरण अभियंता ने कहा, “यह धारणा बनाम सच्चाई का एक क्लासिक उदाहरण है। हमारी वायु गुणवत्ता ही असली कहानी बयां करती है — स्वच्छ, निर्धारित मानकों के भीतर और निरंतर निगराण में।” वास्तव में, NTPC गाडरवारा से उत्सर्जन और वायु गुणवत्ता डेटा CPCB और MPPCB को रियल टाइम में भेजा जा रहा है।
आज के दौर में जहां वायु गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, वहीं NTPC गाडरवारा यह दिखाता है कि औद्योगिक विकास और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व एक साथ चल सकते हैं। संयंत्र की पारदर्शी रिपोर्टिंग और उन्नत पर्यावरणीय नियंत्रण प्रणालियां जिम्मेदार विकास का प्रतीक हैं — और दूसरों के लिए एक प्रेरणास्रोत भी।
गाडरवारा सुपर थर्मल पावर प्लांट सुपरक्रिटिकल तकनीक पर आधारित है, जो उत्सर्जन को कम करता है और ऊर्जा उत्पादन की दक्षता को बढ़ाता है। NTPC गाडरवारा, NTPC के उस मिशन के प्रति प्रतिबद्ध है — “आर्थिक, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से, नवाचार और फुर्ती के साथ, विश्वसनीय विद्युत और ऊर्जा संक्रमण समाधान प्रदान करना।”

*मुख्य बिंदु*
• पर्यावरणीय जिम्मेदारी – NTPC गाडरवारा ने SOₓ का योगदान नगण्य होने के बावजूद समय-सीमा से पहले ही FGD सिस्टम लगाने का निर्णय लिया और इसके लिए ₹601 करोड़ का निवेश किया।
• वायु गुणवत्ता मानकों से बेहतर – संयंत्र के चलते हुए भी क्षेत्र में SO₂ की औसत सांद्रता 20 µg/m³ से कम है, जो CPCB की सीमा (50–80 µg/m³) से काफी कम है।
• वैज्ञानिक प्रमाण – CSIR-NEERI के अध्ययन में भी यह पाया गया कि NTPC गाडरवारा का SOₓ उत्सर्जन नगण्य है और इसका आस-पास की वायु गुणवत्ता पर कोई महत्वपूर्ण असर नहीं है।
• पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी – संयंत्र का रीयल-टाइम डेटा CPCB व MPPCB को भेजा जाता है, और सुपरक्रिटिकल तकनीक से यह संयंत्र ऊर्जा दक्षता के साथ पर्यावरण संरक्षण का भी उदाहरण पेश कर रहा है।


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