अयोध्या आखिर कैसे हार गई भाजपा:जिस मुद्दे पर देशभर में चुनाव लड़ा, वहां की नब्ज नहीं पकड़ पाई; चूक या कुछ और वजह

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यूपी की सबसे हॉट सीट बन गई है फैजाबाद। यहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन के बाद किसी को कल्पना भी नहीं थी कि भाजपा यहां से हार सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी के बाद सबसे ज्यादा फोकस इसी सीट पर था। चुनाव की घोषणा के बाद मोदी ने यहां रोड शो किया। सीएम योगी ने भी 3 जनसभाएं कीं। सारी ताकत लगाने के बाद भी सपा के अवधेश प्रसाद ने 54567 वोटों से भाजपा के लल्लू सिंह को हरा दिया।

1- भाजपा में टूट, बसपा की तरफ शिफ्ट हुए वोट
भाजपा ने अयोध्या में 2 बार से जीत रहे लल्लू सिंह को प्रत्याशी बनाया। लेकिन, राम मंदिर की आंधी में कार्यकर्ताओं का फीडबैक नहीं लिया। यही वजह रही, भाजपा से सच्चिदानंद पांडेय जैसे युवा नेता टूट गए। चुनाव की घोषणा के 6 दिन पहले 12 मार्च को सच्चिदानंद ने बसपा जॉइन कर ली। इसके बाद उन्हें यहां से टिकट दे दिया गया। चुनावी मैदान में उतरे सच्चिदानंद को 40 हजार से ज्यादा वोट मिले।

2- राम मंदिर को ज्यादा तवज्जो दी, लोकल मुद्दे भूले

A- जमीन अधिग्रहण से लोगों में गुस्सा: अयोध्या में राम मंदिर के बाद सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा जमीन अधिग्रहण का रहा। यहां नए घाट से राम मंदिर तक सड़क को चौड़ा किया गया। सड़क के दोनों तरफ के घर और दुकानों को तोड़ा गया। कई लोगों की जमीन का अधिग्रहण हुआ। जो लोग सदियों से यहां बसे थे, उनका आशियाना टूट गया। जानकार मानते हैं, अयोध्या के विकास के लिए जिस तरह से जमीनों का अधिग्रहण किया गया, उसे लेकर जनता में नाराजगी रही।

B- दो बार सांसद रहे, काम नहीं कराए: लल्लू सिंह 2014 और 2019 में सांसद रहे। लेकिन, न तो जनता के बीच पहुंचे और न ही विकास के काम में रुचि दिखाई। वह सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रहे थे। इसके अलावा महंगाई और बेरोजगार का मुद्दा भी काम करता दिखा।

3. लल्लू सिंह का बयान बना बड़ा मुद्दा
लल्लू सिंह का एक बयान सोशल मीडिया पर खूब चर्चित रहा। इसमें उन्होंने कहा था- भाजपा को 400 सीट इसलिए चाहिए, क्योंकि संविधान बदलना है। इस बयान को अखिलेश और राहुल गांधी ने इस तरह से सबके सामने रखा कि अगर भाजपा 400 पार जाती है, तो वह संविधान बदल सकती है। हालांकि, बाद में मोदी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए कहा- अगर बाबा साहेब अंबेडकर स्वयं उतर आएं, तो भी संविधान नहीं बदला जा सकता। लेकिन इस बयान से डैमेज कंट्रोल हो नहीं पाया।

अब जानते हैं अखिलेश की स्ट्रैटजी

पहली स्ट्रैटजी: शहर से ज्यादा ग्रामीण इलाकों पर फोकस
अखिलेश यादव और स्थानीय सपा के संगठन ने अयोध्या में सबसे ज्यादा फोकस ग्रामीण क्षेत्र पर रखा। खुद अखिलेश ने यहां पर दो चुनावी जनसभाएं कीं, एक मिल्कीपुर और दूसरी बीकापुर में। ये दोनों तहसीलें ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।

अखिलेश यादव ने यहां राम मंदिर पर तो कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन ग्रामीणों को शहर में हो रही परेशानियों से जरूर वाकिफ करवाया। जमीन अधिग्रहण, मुआवजे का मुद्दा, युवाओं को नौकरी जैसी भावनात्मक लगाव से लोगों को जोड़ा। लोकल यूनिट का यही फीडबैक भी था कि पूरे अयोध्या के रूरल एरिया में भाजपा नेताओं के खिलाफ नाराजगी है। इसे अखिलेश ने कैश कराने की पूरी कोशिश की।

दूसरी स्ट्रैटजी: जातीय समीकरणों में उलझ गए BJP प्रत्याशी
अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में ओबीसी 22%, दलित 21%, मुस्लिम 19%, ठाकुर 6%, ब्राह्मण 18% और वैश्य 10% के करीब है। अखिलेश यादव ने अपने PDA फॉर्मूले को अपना कर दलित, मुस्लिम और ओबीसी कॉम्बिनेशन को मजबूत किया। यहां जातीय समीकरणों को देखें तो 2014 में लल्लू सिंह ने मित्रसेन यादव को मोदी लहर में दो लाख 82 हजार मतों से हराया था। तब बसपा प्रत्याशी को एक लाख 41 हजार और कांग्रेस के निर्मल खत्री को एक लाख 29 हजार वोट मिले थे। पिछले चुनाव में जब सपा और बसपा साथ आई तो यह अंतर घट गया था। इस बार दलित, ओबीसी और मुस्लिम वोट सपा की तरफ चला गया।

तीसरी स्ट्रैटजी : मुस्लिम को एकजुट किया गया
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा गठबंधन सफल नहीं रहा था, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में काम कर गया। मुस्लिम वोट एकजुट होकर इंडी गठबंधन के पक्ष में गया। वहीं, जिस हिंदू वोट के सहारे भाजपा को जीत मिल रही थी, इंडी गठबंधन उसे बांटने में कामयाब रही। बसपा का दलित वोट, ओबीसी और ब्राह्मण और ठाकुर वोटों की नाराजगी भी एक वजह रही, जिससे भाजपा को बड़ा झटका लगा।

फैजाबाद सीट पर पहली बार 1957 में लोकसभा चुनाव हुआ था। तब से अब तक यहां 7 बार कांग्रेस और 4 बार भाजपा ने जीत हासिल की है। इसके अलावा सपा, बसपा और भारतीय लोक दल भी यहां से जीत हासिल कर चुकी है। हालांकि बीते दस साल यानी कि दो बार से फैजाबाद सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार था।


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