भगवान की शरण में जाने से मिलता है उद्धार: श्रीमद्भागवत कथा में आचार्य आनंद शास्त्री जी का दिव्य संदेश

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पोरसा। यस न्यूज़ प्रतिनिधि

श्री गणेश मंदिर में भगवान श्रीराम दरबार की स्थापना महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ने भक्तों को अद्भुत दिव्यता से भर दिया। कथा का वाचन प्रसिद्ध पंडित आचार्य आनंद शास्त्री जी ने किया, जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया। इस दौरान उन्होंने कृष्ण के जन्म की घटना, नंद बाबा की खुशी और अन्य दिव्य घटनाओं को भक्तों के समक्ष प्रस्तुत किया।

कथा में आचार्य शास्त्री जी ने बताया कि जब-जब भक्तों पर अत्याचार होते हैं, तब भगवान को धरती पर अवतार लेकर उनके उद्धार का मार्ग दिखाना पड़ता है। श्री कृष्ण के जन्म के समय वासुदेव जी ने कंस के कारागार से कृष्ण को लेकर नंद बाबा के घर पहुँचाया और योगमाया को साथ लेकर आये। नंद बाबा के घर में कृष्ण के जन्म की खबर से गोकुल खुशियों से झूम उठा।



महोत्सव में समाजसेवी गंगा सिंह तोमर ठेकेदार ने आचार्य शास्त्री जी को सम्मानित किया। इसके अलावा, अतिथि के रूप में एसआई रमेश चंद्र शर्मा, दुर्गेश सिंह भदोरिया, टीडीएस भदोरिया, श्रीकांत शर्मा, दामोदर सिंह भदोरिया सहित अन्य महानुभावों को भी सम्मानित किया गया। इन सभी का सम्मान श्री कृष्ण गोवर्धन गिरिराज जी मंदिर समिति के सेवादार बृजराज सिंह तोमर और राधा कृष्ण गुप्ता द्वारा किया गया।

कथा के दौरान, आचार्य शास्त्री जी ने पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि पूतना, जो कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी थी, ने भगवान श्री कृष्ण को मारने की योजना बनाई थी। वह कृष्ण को स्तनपान के माध्यम से विष देना चाहती थी। लेकिन कृष्ण ने उसे अपनी गोदी में लेकर, स्तनपान करते हुए उसका वध कर दिया, क्योंकि भगवान की शरण में आने वाले का उद्धार निश्चित है। आचार्य जी ने यह भी बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला के माध्यम से भक्तों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।

माता यशोदा द्वारा श्री कृष्ण को माटी खाने पर डांटने के प्रसंग को भी आचार्य शास्त्री जी ने अत्यंत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया। जब यशोदा ने कृष्ण से पूछा, “तुमने माटी क्यों खाई?”, तो श्री कृष्ण ने कहा, “मैया! मैंने माटी कहां खाई है?” जब यशोदा ने ग्वालों की बात मानी, तो श्री कृष्ण ने अपना मुंह खोला और उसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन कराया। इस दिव्य दृश्य को देखकर यशोदा ने समझा कि कृष्ण स्वयं भगवान हैं।

कथा के दौरान, आचार्य शास्त्री जी ने भगवान की ईश्वरीय व्यवस्था का भी सुंदर चित्रण किया। उन्होंने बताया कि भगवान की व्यवस्था को कोई भी व्यक्ति रिश्वत देकर बदल नहीं सकता। चाहे आप भारत सरकार को धोखा दे सकते हों, पर ईश्वर की सरकार को धोखा देना असंभव है। भगवान के गुप्तचर, जैसे पृथ्वी, जल, हवा, सूर्य आदि, हमारे हर कार्य का गवाह बनते हैं और भगवान की अदालत में गवाही देते हैं।

श्रीमद्भागवत कथा के इस महान आयोजन में भक्तगण भाव-विभोर होकर कथा का श्रवण कर रहे थे। संतों के लिए प्रतिदिन भंण्डारा प्रसादी की व्यवस्था भी की गई थी, जिसे सभी भक्तों ने देखा और आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस कथा ने भक्तों को भगवान की दिव्य शक्तियों और उनके उद्दारक रूपों के बारे में गहरी समझ दी, साथ ही यह अहसास कराया कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान की शरण में जाना ही सबसे सही मार्ग है।


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