सिकल सेल एनीमिया दिवस: एक सामाजिक चेतना की पुकार

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हर वर्ष 19 जून को ‘सिकल सेल एनीमिनिया दिवस’ (Sickle Cell Anaemia Day) के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस विश्व भर में इस गंभीर और अक्सर उपेक्षित अनुवांशिक बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। सिकल सेल एक रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य गोल आकार के बजाय अर्धचंद्राकार या हंसिए के आकार की हो जाती हैं। यह परिवर्तन रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है, जिससे दर्द, थकान, अंग क्षति और यहां तक कि मृत्यु तक का खतरा बढ़ जाता है। यह रोग मुख्यतः वंशानुगत होता है और जन्म से ही व्यक्ति के भीतर रहता है।

सिकल सेल रोग का प्रभाव और चुनौती

सिकल सेल रोग से पीड़ित व्यक्ति को जीवनभर अनेक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसकी मुख्य पहचान अचानक होने वाला तीव्र दर्द (Sickle Cell Crisis), बार-बार होने वाले संक्रमण, और हीमोग्लोबिन की कमी के रूप में होती है। समय पर निदान और इलाज के बिना यह बीमारी अत्यंत घातक हो सकती है। भारत में, यह रोग विशेष रूप से मध्य भारत के आदिवासी समुदायों में अत्यधिक पाया जाता है, जिसमें छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा और गुजरात के आदिवासी क्षेत्र शामिल हैं।

आदिवासी समुदायों में विशेष महत्व

भारत में सिकल सेल एनीमिया एक सामाजिक स्वास्थ्य संकट बन चुका है, खासकर आदिवासी आबादी में। ये समुदाय अक्सर चिकित्सा सुविधाओं से वंचित होते हैं और बीमारी के बारे में जानकारी की अत्यधिक कमी होती है। कई बार इसे पारंपरिक बीमारियों या जादू-टोने से जोड़कर देखा जाता है, जिससे समय पर सही उपचार नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त, सामाजिक कलंक (stigma) और विवाह पूर्व जांच की असंवेदनशीलता भी इस बीमारी के प्रसार का कारण बनती है।

सरकार और समाज का दायित्व है कि वह इन समुदायों तक वैज्ञानिक जानकारी, मुफ्त जाँच सुविधा, और नियमित उपचार उपलब्ध कराए। सिकल सेल का प्रसार केवल जागरूकता से ही रोका जा सकता है। यदि दो सिकल सेल वाहक (Carrier) आपस में विवाह करते हैं, तो उनके बच्चों को यह बीमारी हो सकती है। इसलिए विवाह पूर्व जाँच (Premarital Screening) को अनिवार्य बनाना एक बड़ा कदम हो सकता है।

सामाजिक चेतना और समाधान की दिशा

सिकल सेल बीमारी के प्रति सामाजिक चेतना जागृत करना इस दिवस का प्रमुख उद्देश्य है। इसके लिए जनजागरण अभियान, नुक्कड़ नाटक, मोबाइल स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल स्तर पर शिक्षा और स्थानीय भाषा में जानकारी प्रसारित करने जैसे प्रयास बेहद जरूरी हैं। यह केवल एक चिकित्सा विषय नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन है, जो समाज के हर वर्ग को जोड़ता है – डॉक्टरों से लेकर शिक्षकों, नेताओं, स्वयंसेवकों और आम नागरिकों तक।

सरकार द्वारा ‘सिकल सेल मिशन’, आयुष्मान भारत योजना और निःशुल्क दवा वितरण जैसे कार्यक्रम इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं, परंतु तब तक ये प्रभावशाली नहीं हो सकते जब तक कि स्थानीय समुदाय स्वयं इस जागरूकता का हिस्सा न बनें।



सिकल सेल एनीमिया दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक अवसर है – सोच बदलने का, जीवन बचाने का, और समाज को समरस बनाने का। जब हर व्यक्ति खासकर आदिवासी क्षेत्र का नागरिक, इस बीमारी को समझेगा, उससे लड़ने की शक्ति रखेगा, तभी हम एक स्वस्थ और सशक्त भारत की कल्पना कर सकेंगे। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि एक छोटी सी जानकारी भी किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है।



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