पोरसा (मुरैना), मध्यप्रदेश —
एक ओर सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” और “हर बच्चा पढ़े, हर स्कूल पहुंचे” जैसे अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर विकासखंड पोरसा के गिद्धौली गांव की तस्वीर इन दावों की हकीकत उजागर कर रही है। यहां बच्चों को शिक्षा पाने के लिए हर रोज कीचड़ और दलदल भरे रास्ते से होकर स्कूल जाना पड़ता है।
गांव से स्कूल तक जाने वाला एकमात्र रास्ता भारी बारिश के बाद बदहाल हो चुका है। यह रास्ता किसी सड़क की तरह नहीं, बल्कि एक गंदा और फिसलन भरा नाला नजर आता है। छोटे-छोटे बच्चे इसी दलदली रास्ते से स्कूल जाने को मजबूर हैं। आए दिन बच्चे फिसलकर गिर जाते हैं, जिससे न सिर्फ उनके कपड़े गंदे होते हैं, बल्कि उनकी कॉपियां और किताबें भी कीचड़ में खराब हो जाती हैं।

इंफेक्शन का भी खतरा
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस रास्ते से गुजरने के दौरान बच्चों को त्वचा संबंधी बीमारियों और संक्रमण का भी खतरा बना रहता है। कई बच्चों को पहले भी पैरों में घाव और स्किन इंफेक्शन की शिकायत हो चुकी है।
शिकायतों का ढेर, समाधान शून्य
ग्रामीणों ने इस गंभीर समस्या को लेकर ग्राम पंचायत से लेकर तहसील कार्यालय तक कई बार शिकायत की, लेकिन नतीजा आज भी शून्य है। न कोई सड़क बनी, न कोई वैकल्पिक रास्ता तैयार किया गया।
गांव के बुजुर्ग रामलाल शर्मा बताते हैं, “हर साल बरसात में यही हाल होता है। बच्चे गिरते हैं, चोट खाते हैं। लेकिन किसी को कोई फिक्र नहीं।”
अभिभावकों की चिंता बढ़ी
अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजते समय डरते हैं कि कहीं उनका बच्चा फिसल कर चोट न खा जाए या बीमार न पड़ जाए। मजबूरी में कुछ लोग बच्चों को स्कूल भेजना ही बंद कर देते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई बाधित होती है।
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अब सवाल ये है कि कब तक गिद्धौली के ये मासूम छात्र ऐसे ही कीचड़ और दलदल से जूझते रहेंगे? क्या शासन-प्रशासन को इनकी आवाज़ सुनाई देगी?
गांववालों की उम्मीद अब मीडिया और जनप्रतिनिधियों की सक्रियता पर टिकी है।