शहडोल। धीरेंद सिंह की रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बांणसागर देवलोद के समीप स्थित ग्राम पंचायत सतखुरी में 50 वर्षों से रह रहे ग्रामीणों की कठिनाइयों का समाधान अब तक नहीं हो पाया है। इन ग्रामीणों को राजस्व विभाग द्वारा सन 1965 में पट्टा आवंटित किया गया था, और उसके बाद 1975 तथा 1988 में पट्टे का नवीनीकरण भी किया गया था। बावजूद इसके, वन विभाग द्वारा जल संबंधी उत्खनन पर रोक लगाने से इन ग्रामीणों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
यहां की स्थिति यह है कि इन पट्टों पर बसे ग्रामीणों को जल स्रोतों की अत्यधिक आवश्यकता है, लेकिन वन विभाग के अमले द्वारा उनके जल खींचने के प्रयासों पर लगातार अड़चनें डाली जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि उसी इलाके में भाग की जमीन पर सैकड़ों घर बन चुके हैं, जहां बोरिंग भी किए गए हैं, लेकिन इन बस्तियों के पास स्थित ग्रामीणों को बोरिंग करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
इन समस्याओं को लेकर अब ग्रामीणों ने मीडिया के सामने अपनी व्यथा सुनाई। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष दुर्गेश तिवारी और सैकड़ों ग्रामीण एकजुट होकर इस मुद्दे को उठाए। उनका कहना था कि शासन द्वारा उनके लिए उचित तरीके से पट्टा आवंटित किया गया है, फिर भी जल की समस्या के समाधान में कोई मदद नहीं मिल रही है। वे यह भी सवाल उठा रहे हैं कि जब शासन ने उनके लिए सड़क, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र और बिजली जैसी सुविधाएं प्रदान की हैं, तो पानी की बुनियादी आवश्यकता को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है।
ग्रामीणों की यह मांग है कि उन्हें अपने जल संसाधन पर काम करने की स्वतंत्रता दी जाए, ताकि वे अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। उनका आरोप है कि वन विभाग द्वारा जल खींचने के लिए रोक लगाना न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह उनके जीवन स्तर को भी प्रभावित कर रहा है।
इस संघर्ष के पीछे केवल जल के लिए नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए एक संघर्ष भी छुपा हुआ है, जिससे यह मामला सामाजिक और प्रशासनिक नजरिए से और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मुद्दे को किस तरह से हल करता है, ताकि इन ग्रामीणों की जल और अन्य बुनियादी सुविधाओं की समस्या का समाधान हो सके।
मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित बाणसागर बांध के बावजूद ग्राम पंचायत सतखुरी के ग्रामीणों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इतना बड़ा बांध होने के बावजूद उनके खेतों में नहर से पानी नहीं पहुंचाया गया है। यही नहीं, यदि वे अपनी सुविधा के लिए पंप और बोरिंग के माध्यम से पानी खींचने का प्रयास करते हैं, तो वन विभाग का अमला उनसे पैसों की लेनदेन की बात करता है और उन्हें लगातार परेशान किया जाता है।
ग्रामीणों का कहना है कि यह न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह उनके जीवन यापन के लिए भी गंभीर संकट उत्पन्न कर रहा है। उनकी मांग है कि शासन और प्रशासन इस समस्या का शीघ्र समाधान करें ताकि वे जल संसाधनों का सही तरीके से उपयोग कर सकें और अपनी कृषि गतिविधियों को सुचारू रूप से चला सकें। ग्रामीणों ने प्रशासन से अनुरोध किया है कि वे इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दें और उन्हें जल के संकट से उबारने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।