मध्य प्रदेश शासन द्वारा श्रमिकों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि का फैसला हाल ही में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा, जब उच्च न्यायालय ने इस पर लगाए गए स्टे (रोक) को खारिज कर दिया। इसके बाद, आउटसोर्स कर्मियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है। यह फैसला उन लाखों श्रमिकों के लिए राहत की खबर साबित हुआ है, जो लंबे समय से वेतन वृद्धि का इंतजार कर रहे थे।
न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 का प्रावधान:
न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 की धारा 3 के तहत, श्रमिकों के न्यूनतम वेतन में वृद्धि हर पांच वर्ष में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। हालांकि, मध्य प्रदेश सरकार ने इस प्रक्रिया में 10 साल का लंबा समय लिया और पिछले कई वर्षों से श्रमिकों का वेतन न बढ़ने के कारण उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

वेतन में हुई मामूली वृद्धि:
मध्य प्रदेश शासन ने अब अप्रैल 2024 से न्यूनतम वेतन में वृद्धि करने का आदेश दिया, लेकिन यह वृद्धि अपेक्षाकृत बहुत कम रही। जो वेतन दो बार बढ़ना चाहिए था, उसे केवल एक बार बढ़ाया गया है। इसके बावजूद, इस वृद्धि से श्रमिकों को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन महंगाई के इस दौर में प्रतिमाह केवल 1500 से 2500 रुपये की वृद्धि को ऊंट के मुंह में जीरे जैसा बताया जा रहा है। यह वृद्धि इतनी कम है कि बहुत से श्रमिक इसे जीवन यापन के लिए अपर्याप्त मान रहे हैं।
आउटसोर्स कर्मियों की खुशी:
हालांकि, इस आदेश के बाद श्रमिकों के बीच खुशी की लहर देखी जा रही है, खासकर आउटसोर्स कर्मियों में। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी मेहनत का कुछ मूल्य बढ़ाया जाएगा और उनके परिवारों के लिए थोड़ा और आर्थिक संतुलन स्थापित होगा। वे इस आदेश को एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं, बावजूद इसके कि वेतन में वृद्धि उतनी बड़ी नहीं थी जितनी उनकी उम्मीदें थीं।
इस फैसले ने श्रमिकों के संघर्ष को एक सफलता के रूप में चिह्नित किया है, लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या इतनी मामूली वृद्धि श्रमिकों के लिए पर्याप्त होगी, खासकर महंगाई की बढ़ती दर को देखते हुए।
