“चप्पल की धूल से परे, एक नई दुनिया की ओर बढ़ते कदम”

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चित्र चित्रण : (विनय मेहरा की कलम से )


“गाँव में पहली बार सड़क बनी और चप्पल की धूल कहीं सड़क पर न जम जाए, इसी लिए बच्चों ने चप्पल उतार कर नयी सड़क पर खेलना शुरू कर दिया।”

यह दृश्य किसी भी गाँव की मासूमियत और उनकी आत्मीयता को बयान करता है। सड़क का निर्माण, जो पहले एक सपना था, अब हकीकत बन चुका है। जब पहली बार बच्चों ने इस सड़क पर अपने नन्हे कदम रखे, तो उनका हर्षित चेहरा और उल्लासित हंसी यह बताती है कि यह सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि उनके जीवन में एक नई उम्मीद और बदलाव का प्रतीक बन गई है।

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ग्रामीण आंचल में जहाँ आज भी बहुत सी जगहें ऐसे विकास से महरूम हैं, वहां इस तरह की तस्वीरें दिल को छू जाती हैं। बच्चों की यह नन्ही सी कोशिश, चप्पल उतारकर सड़क पर खेलने की, एक ओर उदाहरण है उनके निर्दोष विश्वास का कि यह सड़क उनके लिए एक नया संसार लेकर आई है। यहाँ न तो धूल की परवाह है, न उन नन्हे कदमों को रोकने के लिए कोई खौफ। यह तो एक नई शुरुआत है, जहां खेल, खुशियाँ और भविष्य की उम्मीदें पंख पसार रही हैं।

इस दृश्य में एक गहरी मानवीय दृष्टिकोण है। जब हम किसी समाज में बदलाव लाने की बात करते हैं, तो उसे बड़े-बड़े विकास कार्यों से जोड़ते हैं। लेकिन इस तस्वीर में हमें यह समझने का मौका मिलता है कि असल में परिवर्तन छोटे-छोटे कदमों से आता है, और उन कदमों को उठाने वाली मासूमियत और उम्मीद में छिपा होता है पूरा समाज।

बच्चों का चप्पल उतारकर सड़क पर खेलना एक सरल परंतु अत्यंत गहरा संदेश देता है— वे इस सड़क को महज़ एक मार्ग नहीं, बल्कि अपनी पहचान और भविष्य के प्रतीक के रूप में देख रहे हैं। यह क़दम इस बात की पुष्टि करता है कि हर छोटी सी पहल, चाहे वह एक सड़क का निर्माण हो या किसी समुदाय का विकास, एक बड़े बदलाव का आधार बन सकती है।

यह तस्वीर केवल एक सड़क और बच्चों के खेल का दृश्य नहीं है; यह हमारे समाज में छिपी मासूमियत, उम्मीद, और जीवन की खूबसूरत सादगी का प्रतीक है।


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