भिंड, मध्य प्रदेश –
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहना योजना, जो महिलाओं को उनके अधिकारों और सुरक्षा के लिए चलाई जा रही है, क्या वास्तव में उन महिलाओं तक पहुंच रही है जो सबसे अधिक इसके हकदार हैं? क्या प्रशासन सिर्फ योजनाओं को लागू करने तक सीमित है या फिर इसे धरातल पर वास्तविकता में उतारने की जिम्मेदारी भी निभाई जाती है? भिंड जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है, जो इन सवालों के जवाब मांगता है।
यह कहानी है सरोज सिंह भदौरिया की, जो अपने पति मदन सिंह भदौरिया के साथ बीमारियों का सामना कर रही हैं, लेकिन उनके घर पर दबंगों ने जो तांडव मचाया है, वह न केवल दिल को दहला देने वाला है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि प्रशासन कितनी तेजी से ऐसे मामलों पर कार्रवाई करता है।

24 दिसंबर को, दबंगों ने सरोज के घर को जबरदस्ती तोड़कर समतल कर दिया। क्या यह सिर्फ एक घर का नुकसान था, या प्रशासन की नाकामी की एक और तस्वीर थी? इससे पहले, दबंगों ने उनके घर के मुख्य रास्ते को अवरुद्ध कर दिया, ताकि वे बाहर न निकल सकें। मदन सिंह भदौरिया, जो पिछले 27 महीने से गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और बिस्तर पर पड़े हुए हैं, अब चलने फिरने में भी असमर्थ हैं। उनके इस हालत का फायदा उठाकर दबंगों ने उनका मकान तोड़ा और उस पर कब्जा कर लिया।
यह पूरा मामला तब और भी गंभीर हो जाता है जब सरोज सिंह भदौरिया ने प्रशासन से कई बार मदद की गुहार लगाई। वह सिटी कोतवाली, एसडीएम कार्यालय, और एसपी साहब के पास चक्कर लगा चुकी हैं, लेकिन हर बार उन्हें केवल वादे और आश्वासन मिलते हैं, कार्रवाई नहीं। एक महीने से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन न तो दबंगों पर कोई कानूनी कार्रवाई हुई है और न ही उनके घर में चोरी हुए सामान की रिपोर्ट लिखी गई है।

क्या यह एक और प्रशासनिक विफलता नहीं है? क्या प्रशासन ने सच में उन गरीब और लाचार महिलाओं को भूल दिया है जो अपनी आवाज नहीं उठा पातीं? क्या सरोज सिंह भदौरिया जैसे लोग केवल लाडली बहना योजनाओं के आंकड़ों में शामिल होते हैं, लेकिन जब उन्हें वास्तविक मदद की जरूरत होती है तो कोई नहीं सुनता?
इस पूरी स्थिति ने सरोज सिंह भदौरिया को इतना हताश कर दिया है कि उन्होंने मीडिया के माध्यम से अपनी व्यथा साझा करते हुए यह तक कह दिया कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो वह परिवार समेत आत्महत्या कर लेंगी। यह बयान सिर्फ एक दर्दनाक अपील नहीं, बल्कि उन लाखों गरीब महिलाओं के लिए भी सवाल है, जो किसी भी परिस्थिति में प्रशासन से न्याय की उम्मीद करती हैं। क्या वे भी यही महसूस करती हैं कि उनके अधिकारों का कोई मोल नहीं है?
दूसरी ओर, सरोज की तकलीफों को अनदेखा कर रहे दबंगों के हौसले अब और भी बढ़ गए हैं, और प्रशासन की चुप्पी इस स्थिति को और भी गंभीर बना रही है। क्या यह नहीं हो सकता कि प्रशासन उन दबंगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और सरोज को उसके हक का न्याय दिलवाए? अगर प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से आंख मूंदे रहेगा, तो क्या यह नहीं कहा जा सकता कि “शासन केवल उन ताकतवरों का है, जो दबंगई से अपनी मर्जी चलाते हैं, जबकि लाचार और गरीब महिला की आवाज कहीं भी नहीं सुनाई देती?”
यह मामला सिर्फ एक परिवार की व्यथा नहीं है, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे पर एक सवालिया निशान है। क्या सरकार की लाडली बहना योजना सिर्फ एक योजना बनकर रह जाएगी, या इसका असर जमीनी स्तर पर भी महसूस होगा? क्या प्रशासन को तब जागेगा, जब यह मामला और भी बड़ा हो जाएगा, और लाचार परिवार का दर्द और बढ़ जाएगा?
सरकार को चाहिए कि वह इस मामले की गंभीरता को समझे और तुरंत दबंगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, ताकि एक लाचार महिला को उसके अधिकार मिल सकें और इस तरह की घटनाएं भविष्य में कभी न हों। प्रशासन की खामोशी और ढीला रवैया सरोज सिंह भदौरिया जैसे परिवारों की उम्मीदों को तोड़ने का काम कर रहा है। क्या यही हम सबका न्याय है?

