‘जल गंगा’ में बहा काजू-बादाम ! MP के अफसर 1 घंटे में चट कर गए 14 किलो ड्रायफ्रूट, जनता के पैसों से हुआ पेटपूजा का सरकारी जलसा!’

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> “जल संरचना की सफाई हो न हो, पर पंचायत के खजाने की सफाई जरूर हो रही है!”

— एक ग्रामीण की तंज़भरी टिप्पणी जो इस पूरे घोटाले पर सबसे सटीक बैठती है।




शहडोल।

जिले के गोहपारू जनपद की ग्राम पंचायत भदवाही में आयोजित जल गंगा संवर्धन अभियान अब एक ‘ड्रायफ्रूट घोटाले’ में तब्दील होता नजर आ रहा है। महज एक घंटे के सरकारी कार्यक्रम में अफसरों ने 14 किलो ड्रायफ्रूट, 6 लीटर दूध में बनी मीठी चाय और हजारों की मिठाई-नमकीन ‘सुपाच्य’ कर दी।

अब यह खर्चा नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का चटपटा बिल बनकर सोशल मीडिया और पंचायत गलियारों में वायरल हो गया है।




💸 बिल बना ‘भोजन प्रसादी’, स्वाद था शाही, भुगतान जनता की जेब से

इस जिला स्तरीय आयोजन में कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ, एसडीएम, जनपद सीईओ और अन्य अधिकारी केवल एक घंटे के लिए पहुंचे थे। इस दौरान ग्राम पंचायत ने ‘स्वागत में कंजूसी न हो’ की नीति अपनाते हुए:

5 किलो काजू

6 किलो बादाम

3 किलो किशमिश

6 लीटर दूध

5 किलो चीनी

30 किलो नमकीन,

और 20 पैकेट बिस्कुट


… का प्रबंध कर डाला।

कुल खर्च: ₹19,010 — वह भी सरकारी फंड से सीधे भुगतान




🛒 टी स्टॉल से काजू और पूरी, किराना से सब्जी का मसाला!

भ्रष्टाचार की रसोई यहीं खत्म नहीं हुई। सुरेश तिवारी टी स्टॉल, जो आमतौर पर चाय बेचता है, वहां से पूड़ी-सब्जी के पैकेट और काजू खरीदे गए। वहीं गोविंद किराना स्टोर, जो काजू 1000 रुपए/किलो में बेच रहा था, उसके बगल की दुकान ने वही काजू 600 रुपए/किलो में बेच दिया।
यानी अफसरों के स्वाद में न केवल सूखा मेवा था, बल्कि मुनाफे का घी भी भरपूर मिला।




🍲 ग्रामीणों के लिए खिचड़ा, अफसरों के लिए शाही भोज!

जहां अधिकारी ड्रायफ्रूट और स्पेशल चाय का लुत्फ उठा रहे थे, वहीं आयोजन में शामिल ग्रामीणों को खिचड़ा और पूड़ी-सब्जी परोस दी गई। आयोजन स्थल पर मौजूद ग्रामवासियों का दावा है कि “काजू-बादाम कहीं नजर नहीं आए। शायद अधिकारीगण इसे साथ लाए वाहन में ही रखवा कर ले गए।”




📜 जल गंगा अभियान का उद्देश्य क्या था?

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर यह अभियान जल स्त्रोतों की सफाई और संरक्षण के लिए शुरू किया गया है। लेकिन शहडोल में इस अभियान का उद्देश्य अफसरों की तृप्ति और सरकारी पैसों की स्वाहा जैसा प्रतीत हो रहा है।




अब सवाल ये है…

क्या ग्राम पंचायतों को अफसरों के भोज के लिए भंडारा निधि का प्रावधान है?

क्या एक घंटे के कार्यक्रम में 14 किलो ड्रायफ्रूट का हजम हो जाना प्राकृतिक है या प्रक्रियागत घोटाला?

क्यों प्रशासन इस खुले भ्रष्टाचार पर अभी तक मौन है?

क्या जिला कलेक्टर और वरिष्ठ अधिकारी इन फर्जी बिलों की स्वीकृति से अवगत थे?





🧾 बिल की भाषा बोलती है सच्चाई

> एक ओर ‘जल गंगा’ को बचाने के लिए लाखों की बातें हो रही हैं, दूसरी ओर गांवों में अफसर काजू-बादाम की बारिश करवा रहे हैं।



यह मामला अब सिर्फ सोशल मीडिया की वायरल खबर नहीं रहा, बल्कि सत्ता और प्रशासन की संवेदनहीनता का दस्तावेज बन चुका है।




📣 जनता पूछ रही है: जल गंगा बचेगी कब, जब काजू-बादाम में ही बह रहा है विकास ?




नोट: इस खबर के प्रकाशित होने तक जिला प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया था। यदि कोई प्रतिक्रिया प्राप्त होती है, तो उसे अगली कड़ी में शामिल किया जाएगा।



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