अतिबला ——  खूनी बादी बवासीर व आंतों में सूजन तथा जोड़ों के दर्द अंदरुनी व बाहरी घावों की महा औषध !

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अतिबला : – सफेद दाग , गठिया ,कामोत्तेजना की कमी ,खूनी बादी बवासीर व आंतों में सूजन तथा जोड़ों के दर्द अंदरुनी व बाहरी घावों की महाऔषध !
ये झाड़ी नुमा पौधा भारत के गर्म भागों में खरपतवार के रूप में उग जाता है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में, इसके विभिन्न भागों जैसे जड़, पत्ते, फूल, छाल, बीज और तने का उपयोग किया जाता है। इस पौधे में सूजन-रोधी, हाइपरलिपिडिमिक, मूत्रवर्धक, यकृत-सुरक्षात्मक, हाइपोग्लाइसेमिक, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी, दर्दनाशक, रोगाणुरोधी, मलेरिया-रोधी, घाव भरने वाले और दस्त-रोधी गुण होते हैं। ये गुण फोड़े-फुंसी, अल्सर, बुखार, मूत्रमार्गशोथ, उपदंश, मोतियाबिंद, दस्त, पैरों में दर्द, गर्भाशय विस्थापन, में चमत्कारिक लाभ देते हैं
एक झाड़ीदार पौधा है जिसकी पहचान उसके हृदयाकार पत्तों, रोएँदार तनों और सुनहरे पीले फूलों से होती है। इसके फल कंघी की तरह दांतों वाले होते हैं। यह पौधा पूरे भारत में पाया जाता है

अतिबला के पत्तों का रस त्वचा के दाग-धब्बे हटाने में मदद करता है. इसका उपयोग बालों की रूसी और झड़ने की समस्या को दूर करने के लिए भी किया जाता है.
बाहरी रूप से लगाने पर, अतिबला लेप अपने जीवाणुरोधी और सूजनरोधी गुणों के कारण घावों, कटने और त्वचा के संक्रमणों को ठीक करने में मदद कर सकता है। यह एक्ज़िमा और सोरायसिस जैसी बीमारियों में भी मदद करता है।
अतिबला त्वचा संबंधी कई समस्याओं जैसे चकत्ते, खुजली और घाव को ठीक करने में मदद करता है। इसमें सूजन-रोधी और ठंडक देने वाले गुण होते हैं जो चिड़चिड़ी त्वचा को आराम पहुँचाते हैं। यह त्वचा के पुनर्जनन को तेज़ करने और समग्र बनावट में सुधार करने में भी मदद करता है। बेहतर त्वचा स्वास्थ्य के लिए आप इसका लेप लगा सकते हैं या इसका काढ़ा बना सकते हैं। यह प्राकृतिक रूप से रक्त को भी शुद्ध करता है।
अतिबला की जड़ का चूर्ण (1-2 ग्राम), चंदन (1-2 ग्राम), तुवरक तैल (2-5 मिली) तथा बाकुची तेल (2-4 मिली) लें। इसे मिलाकर सफेद दाग पर लेप करने से लाभ होता है।

अतिबला अपने सूजनरोधी और ऊतक-मरम्मत गुणों के कारण घावों को तेज़ी से भरने में सहायक है। यह सूजन कम करने, संक्रमण से लड़ने और त्वचा की रिकवरी में तेज़ी लाने में मदद करता है। इसका लेप घाव या घाव पर बाहरी रूप से लगाया जा सकता है। मुँह द्वारा सेवन करने पर यह आंतरिक उपचार को भी बढ़ावा देता है, जिससे यह छोटे और पुराने, दोनों तरह के घावों के लिए प्रभावी है।

अतिबला में सूजन-रोधी गुण होते हैं जो जोड़ों के दर्द और सूजन से राहत दिलाने में मदद करते हैं। यह गठिया और गठिया की बीमारियों में आराम पहुँचाता है। हड्डियों को मज़बूत बनाकर और अकड़न को कम करके, यह गतिशीलता और आराम को बेहतर बनाने में मदद करता है। जोड़ों के दर्द से पीड़ित लोग प्राकृतिक राहत के लिए इसका नियमित उपयोग कर सकते हैं। इसका आरामदायक प्रभाव इसे दैनिक आयुर्वेदिक उपयोग के लिए आदर्श बनाता है।
इसका सूजनरोधी प्रभाव जोड़ों की तकलीफ़ को कम करता है और गतिशीलता को सुचारू रूप से बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर से यूरिक एसिड को बाहर निकालने में भी मदद करता है। रक्त परिसंचरण में सुधार और तंत्रिकाओं को शांत करके, यह गठिया से पीड़ित लोगों के लिए बहुत मददगार साबित होता है

अपने कामोद्दीपक व कामोत्तेजक गुणों के कारण अतिबला का सेवन पुरुषों के लिए एक बेहतर रसायन की तरह काम करता है, जो उनका कायाकल्प करने वाला होता है।
अतिबला पुरुषों में शुक्रधातु को बढ़ाती है, जो वीर्य की गुणवत्ता में सुधार करती है।
यह पुरुषों के कामोत्तेजना को बढ़ाती है और इरेक्टाइल डिसफंक्शन में फायदेमंद होती है।
अतिबला एक प्राकृतिक ऊर्जावर्धक के रूप में कार्य करता है। यह थकान से लड़ने में मदद करता है और शारीरिक सहनशक्ति बढ़ाता है, जिससे यह एथलीटों या बीमारी से उबर रहे लोगों के लिए बहुत अच्छा है।

अपने सेडेटिव गुणों के कारण अतिबला का सेवन मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है, जो तनाव को कम करने और अनिद्रा की समस्या से राहत दिलाता है।
अतिबला के 7 पत्तों को पानी में पीस लें। इसका रस निकालकर मिश्री मिला लें। इसका सेवन करने से पित्त के बढ़ने से होने रक्तपित्त दोष जिससे मस्तिष्क में प्राणवायु की अल्पता तथा रक्त दूषित होने के कारण होने वाले उन्माद या मैनिया या मानसिक रोगों में आश्चर्यजनक लाभ होता है।

इसमें एंटी इंफलामेटरी और डाइयुरेटिक गुण होते हैं जिससे अतिबला किडनी और मूत्र प्रणाली को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है. पेशाब में जलन, संक्रमण और बार-बार पेशाब आने की समस्या में यह लाभकारी है.
अतिबला के पत्तों का काढ़ा पीने से पाचन तंत्र मजबूत होता है. गैस, कब्ज और एसिडिटी की समस्या दूर होती है. अगर किसी को बार-बार पेट दर्द होता है, तो इसके पत्तों का रस या काढ़ा बहुत फायदेमंद साबित होता है.
चूर्ण: 1-2 ग्राम शहद या गर्म पानी के साथ लिया जाए

काढ़ा (कषायम): जड़ी बूटी के पत्तों छाल जड़ पानी में उबालें और छानकर पी लें।
पेस्ट: घाव या त्वचा की जलन पर लगाया जाता है सीधे ही

स्वरस 15-20 मिलीलीटर ताज़ा स्वरस सुबह

डॉ० जयवीर सिंह
अवधूत आयुर्विज्ञान संस्थान
पिंडारा फ्लाईओवर गोहाना रोड
नजदीक राजमहल पैलेस जींद हरियाणा
9350272972


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